Monday, April 16, 2018

जानवर !

परमपूज्य, माननीय, प्रेमी, पिताजी, महामहिम,
श्री राम रहीम !

 ... के पकड़े जाने के बाद से सोचता हूँ की नाम के पीछे 'परमानेंटली ' जानवर लगा लूँ ,

ताकि 'डेस्पेरेटेली' सिद्ध कर सकूँ की मैं कोई 'इंसा' नहीं,
भाई! कोई जानता है की 'स्पीशीज' चेंज करवाने की याचिका कहाँ दायर करूँ ?
कागज, दस्तावेज ही बता दो, ताकि खुद को जानवर बता सकूँ !

एक 'आईडिया' है , सोचता हूँ अपने माँ बाप को ही 'एस ए विटनेस' बुला लूँ ,
शायद इसी से अपना केस स्ट्रांग बना लूँ!

वो ये तो बता सकते हैं की हमारे साथ तो सदा ही एक जानवर रहता आया है ,
महोदय, बल्कि हमारा तो पूरा परिवार ही इसे कभी कुत्ता तो कभी गधा सम्बोधित करता आया है।

देखिये ये तो मान ही लीजिये की ये कोई 'इंसा' नहीं,
जानवर हो कर भी इसकी 'गुफ़ा' की भी कोई मंशा नहीं।

कदाचित जानवर होने के भी कुछ नुक्सान हैं ,
थोड़ा डर तो रहेगा,
इस देश के 'विलन ' भी अभिनेता बन महान हैं।

परन्तु 'बेनिफिट और रिस्क' को 'इवलुएट' करके
जानवर बनने में ही फायदा है,
और मेरा 'इंसा' से कोई सरोकार नहीं,
ये ही आज का कायदा है।  




Tuesday, July 4, 2017

वीरांगना

माँ तूने मुस्कराहट तो देखी ,
मगर कुटिलता पकड़ ना  पायी।
तूने देते देखा आशीर्वाद,
असली इरादा भांप ना पायी।

आज भी आ जाते हैं वो मेरे सपनों में ,
आशीष देने, छुआ यहाँ वहां अपनों ने,

मैं कभी कभी अपने पति से भी डरती हूँ ,
देख माँ मैं चुप रह तिल तिल मरती हूँ ,

रसोई में आना, देके बहाना खाना बनाने को ,
शिकार तो मैं थी , बस उसकी हवस मिटाने को ,

क्यों ? क्यों तृप्ति एक छोटे बच्चे से ?
वो तो पूजा पाठ भी करते थे अच्छे से ,

नेक, शालीन, दयालु , मुँह पर सबके लिए दुआ है ,
माँ; मगर उसने मेरा हर अंग छुआ है ,

कभी कभी मन करता बस मर जाने का ,
घर से भागती , कारण है बड़ों से शर्माने का ,

अपने से लज्जित पाओं तले जलता अलाव है ,
वस्त्र हर , रिसता खून नहीं , मगर कितने गहरे घाव हैं ,

मैं आज भी थर्रा जाती हूँ उनके आने से ,
सीता बना लील ले, कतराती नज़र मिलाने से ,

तिरस्कृत , अस्वीकृत किया कितनी ही बार मेरे अहम् ने ,
हाँफती, पसीने में तरबतर, सोये उठाया मेरे वहम ने ,

माँ, मैं घायल हूँ , ना मरहम ना लेप हुआ है ,
निर्दोष का बचपन छीन, फिर दो मुंहे समाज में 'रेप' हुआ है।



Thursday, June 15, 2017

काला !

मैं काला हूँ !

मुझे आपसे शिकायतें हैं कुछ ,


बुरा हूँ क्या जो काला हूँ ?
पराया हूँ क्या जो काला हूँ ?

देखिये! सोचिये ज़रा,
मैं  तो 'by default' हुआ ,
मैं नहीं तो समझिये की श्वेत का 'fault' हुआ। 

मैं तो हूँ ही , बस है तो वो नहीं। 

रंग हुआ सफ़ेद तो गाय को माँ बना लिया ,
और भैंस का क्या ?

भैंस से रिश्ता ही नहीं क्या जो काला हूँ ?

चलिए चमड़ी तक तो ठीक था ,
इसका तो मन भी काला है ,
अरे ! मैं कोई ताना हूँ क्या जो काला हूँ ?

गोरा करने को काली क्रीम ,
बस दूध से उजले बेबी का ड्रीम ,

मैं अभिशाप हूँ क्या जो काला हूँ ?

सालों साल रंगभेद हुआ ,
गोरे ने काले को पीस दिया ,
उसका 'मन' भी गोरा था , फिर मुझे क्यों बीच में खींच लिया ?

मैं कोई बदनामी हूँ क्या जो काला हूँ ?


आपने नज़र और कर्म भी काले कर दिए ,
शैतान, टोना टोटका भी हवाले कर दिए ,
 मुझसे रोष  है क्या जो काला हूँ ?


चलिए छोड़िये , बताइये श्वेत ने किया क्या ?
मुझसे से तो आपका रिश्ता भी पुराना है ,
चूमते काले में चाहे जो भी जमाना है। 


काले की टोह में जीवन लाते हो ,
बैठ मेरी सोहबत में सुकून पाते हो ,
फिर मुझे गाली क्यों ?
मैं बस किस्मत का मारा हूँ जो काला हूँ !

मैं काला हूँ !

मैं भी एक रंग हूँ , अब इस दोषारोपण से बड़ा  तंग हूँ ,
क्यों इस गंद का ठिकरा मेरे सर फोड़ते हो ?

मैं कोई 'सफ़ेद झूठ' हूँ क्या जो काला हूँ ?












Sunday, May 15, 2016

कालचक्र

सालों से खड़ा यहाँ
हवा में पत्ते लहराता
कितनी ज़िंदगियाँ देखता हूँ
ये कहानी एक बच्चे की 

तब यहाँ पक्की सड़क ना थी,
कच्ची थी, हाँ धूप इतनी कड़क ना थी। 


माँ के बाल खींचता यहीं स्टेशन से उतर बड़ा सामान उतराता था,
ननिहाल आ, फूल के कुप्पा, वो खूब इतराता था। 

कितना कुछ बदल गया ,
रंग नए, ये माहौल नया,
ये पानी और मिज़ाज़ नया,

कुछ तो उसमे ख़ास था, इतने चेहरों में रहता इंतज़ार,
बस एक और हाड़ मांस न था। 

माँ के आँचल में छुपता , आँख मिचौली करता,
अपनी माँ से हँसता,लड़ता , मुझे छू कर निकलता था ,
मुझे देखता एकटक , उसमे भी प्यार झलकता था। 


देखा है मैंने,
माँ ने नाक भी पोंछा डाँट डपट कर,
और देखा है मैंने ,
उसकी मूछों से गिरता पानी टपक कर ,


आया है कभी वो सोते सोते भी, मांगते देखा खिलौने रोते रोते भी ,
सालों साल बाद आज फिर वो आया है, उसकी माँ पे अब बुढ़ापे का साया है,

देख मुझे वो मंद मंद मुस्काया है, सालों बाद भी बस ये बूढ़ा पेड़ याद आया है ,
आज माँ के आँचल से निकल माँ को आँचल दे रहा है। 

सालों साल से खड़ा ये पेड़ आज गर्व से खड़ा हो गया है ,
उम्र तो बढ़ती रही मगर मेरा लाल अब बड़ा हो गया है। 

ओस की बूँद !!!

तू बूँद एक ओस की ,
बस बात ये अफ़सोस की।  

जैसे फिसलती पत्ते से,
नीचे घास में खो जाओगी,
ढूँढूँगा कैसे ?
गिर बस पानी बन जाओगी। 

अभी तो आई बस ठहरी रहो,
कुछ देर तो इस पत्ते की बन के रहो,

बस धूप तक का वक़्त है,
इस पत्ते ने मुरझाना है,
रुकना नहीं, तुमने भी तो वापिस घर चले जाना है। 

बस कुछ पल मिल तो लो, इस पत्ते की सुन तो लो ,
कुम्हलाता तन, हुआ पराया सा मन है , देख लो इधर , मेरे पास वक़्त ज़रा कम है।।

Wednesday, March 23, 2016

बागी की क्रांति

मैं डरते डरते चलता हूँ, मैं चलते चलते डरता हूँ,
मैं रुकते रुकते ठहरता हूँ, मैं ठहरते ठहरते रुकता हूँ। 

मैं रोते रोते सहमता हूँ, मैं सहमते सहमते रोता हूँ,
मैं सोते सोते जागता हूँ, मैं जागते जागते सोता हूँ। 

मैं कांपते कांपते लिखता हूँ, मैं लिखते लिखते कांपता हूँ,
मैं तकते तकते सीखता हूँ, मैं सीखते सीखते ताकता हूँ। 

मैं जीता जीता अक्स में , मैं अक्स अक्स जीता हूँ,
मैं पीता पीता बूँद भर, मैं बूँद बूँद पीता हूँ। 

अब तोड़ दूँ ये संगलें तो फिर शान्ति आएगी ,
कर दूँ आवाज़ बुलंद तो फिर क्रांति आएगी। 

लूँ कलम फिर से मैं कुछ कला उकेर दूँ,
लूँ एक सपना मैं और फिर उसे साकार दूँ।

अब मुस्कुरा दूँ यूँ के मैं फिर खुद को सराह दूँ,
मिटटी में भर के जान फिर उसे आकार दूँ।

फिर न डरते डरते मैं चलूँ, ना चलते चलते मैं डरूँ ,
फिर ना जीते जीते मैं मरुँ, ना मरते मरते मैं जीयूं।

बन के हठी अब ठान लूँ तो एक मंज़िल आएगी,
अब जल जाऊं तो यही सही, ये लाश जल के लौ जगाएगी।


समानता

एक जलता कश्मीर, एक अफ़ग़ानिस्तान ,एक सीरिया, एक सूडान ,
एक टूटता कोरिया, एक पाकिस्तान, एक रूस, एक ईरान ,
यहाँ भी है और वहाँ भी।


ये राजनीति , ये अलगाववाद, ये नक्सली ये माओवाद,
ये तस्करी, ये भाई भतीजावाद,ये तानाशाही ये आतंकवाद ,
यहाँ भी है और वहाँ भी।


अनेक पंथ और सिर्फ एक काज , हर तरफ टूटती आवाज़,
एक आलाप और एक ही साज, हर तरफ बरसती गाज़ ,
यहाँ भी है और वहाँ भी।


भूखी ज़िन्दगी, प्यासी सांस, सूखते आंसू ये निरंतर विलाप,
कुचटती शख्सियत नुचता मांस, हर सितम अँधेरे ये दुःख के सैलाब ,
यहाँ भी है और वहाँ भी।


ये धोखाधड़ी ये अत्याचार, ये कुछ तमंचे, ये झूठी शान,
ये शोषण ये बलात्कार , ये छोटे साम्राज्य बस मरती मासूम जान,
यहाँ भी है और वहाँ भी।